मौसम ने ली अंगड़ाई,कली घटा है छाई।
आज दशकों बाद,सौंधी सी खुशी आई।।
वातावरण जाग रहा है,खुद को फिर भाप रहा है।
सृष्टि की आस जगी है,जीवन फिर सांस रहा है।।
विश्व के कष्ट ने हमको,कुछ ऐसे बांध दिया है।
सृष्टि फिर स्वच्छ हो रही,जगत को प्राण दिया है।।
क्यों ना हम इससे सीखो,कुछ जैविक समृद्धि बढ़ाए।
या फिर राह ना बदले, सृष्टि reset दबाए।।
फिर दुनिया घर बंद करे वो,सब को कस्टो से डराए।
वातावरण फिर खुद को सुधरे,और अपना वर्चस्व दिखाए।।

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