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Bheed(भीड़)- review समीक्षा

  • Writer: arun gangh
    arun gangh
  • Mar 25, 2023
  • 2 min read

जब हम इंडिया में ,अचानक हुए सरकारी फरमान से, लॉकडाउन के 2 महीने आराम चिंतन और नए अनुभव कर कर रहे थे, उसी वक्त एक और भारत(हिंदुस्तान) करोड़ों की संख्या में सड़को , पटरियों और कच्ची सड़को पर अपने जीवन और परिवार को बचाने की जद्दोजहद में अपने —अपने गांवो की ओर, सैकड़ों किलोमीटर चलने में लगा था। ये कहानी उस भारत की है।


अचानक लॉकडोन की घोषणा होती है ,और करोडो लोग जो बरसों से शहरो के जिन घरों में अपना समझ कर रह रहे थे,आज उन्हें पता लगता है की वो तो उनके है ही नही। ये विभाजन से भी बड़ा शहर से गाँव का पलायन था, जहां सभी भगवान भरोसे चल पड़े थे,बिना किसी सरकारी मदद के, बिना बस ट्रेन वाहन के,उपर से सरकारी जुल्म। इसी के बीच एक नीची जात के पुलिस अफसर को उनके राज्य की सीमा की ओर आते समूह को रोकने का जिम्मा दिया जाता है, वो है सूरज कुमार टिकस,जो सिंह लिखते है,क्युकी छोटी जात को सम्मान नही मिलता। राज्य की सीमा पर हजारों की थकी हारी झुझलाई भूखी भीड़ को सम्हालने की कहानी है भीड़।


राज कुमार राव और पंकज कपूर ने सिहरा देने वाली एक्टिंग की है। दोनो ने अपने अपने चरित्र को जीया है। दोनो के दुख तड़प मानसिक स्थिती उनके आखों में झलकती है, अदभुत एवं अद्वितीय। भूमि ने भी एक उच्च जात की डॉक्टर जिसे टिकस से प्यार हो गया है,की भुमिका बेजोड़ निभाई है। आशुतोष राणा,दिया मिर्जा,वीरेंद्र सक्सेना एवं कृतिका सक्सेना की भी सशक्त भूमिकाएं है। और अनुभव सिन्हा के क्या कहने, केवल नाम की काफी है। 12 सेंसर के कट के बाद भी ये सिनेमा मानस को झकझोड़ने वाली है।


भीड़ में इतने भावनाएं है, की गिनती मुश्किल है। जब एक रास्ता बनाने वाले कैंक्राइट मिक्सर के अंदर से 20सो लोग निकलते है, मन क्रंदन करता है। जब रेल की पटरी पर नंगे पाव,भूखे हारे मजदूर परिवारों को देखो तो दिल विचलित हो जाएगा। ऐसे कई मौके आयेंगे की आप ,अपनी स्थिति पर तृप्त होंगे की ,हम कितनी बेहतर स्तिथि में थे। बहुत मौका पर आह निकलेगी। उस व्यथा को शब्दो में पिरोना बहुत मुश्किल है। एक सीन में रिपोर्टर राजकुमार राव को कहती है की 30 मिनिट का टीवी कार्यक्रम करे की इस स्तिथि में मुसलमानों के साथ यह दुर्व्यवहार हो रहा है, तो राव कहते है की आप को सिर्फ वही दिख रहा है, यह माहवारी में लड़कियां काग़ज़ भरे दिनो से बैठी है,बच्चे भूख से बिलख रहे है, उच्च – नीच यह भी लोग कर रहे है, आप एक पन्ना लिख रही है, हम ग्रंथ देख रहे है। इस वाकए में कितने मर्म शामिल है, सोच से परे है।


अगर सच देखने का माद्दा है,हिम्मत है, तो इस सिनेमा को देखने जाइए, शर्तिया अपनी आंखे खुली की खुली रह जायेंगी। आप की संवेदनाएं आपको झकझोर देंगी,ये मेरा वायदा है।

🌟🌟🌟🌟🌟 AKG RATING.



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